
भारतीय नोटों पर गांधी जी की मुस्कुराती तस्वीर अब इतनी आम हो गई है कि लगता है जैसे वो हमें रोज़ खर्च करते वक्त आशीर्वाद दे रहे हों – “खर्च करो, लेकिन संयम से बच्चा!”
लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि गांधी जी ही क्यों? नेहरू जी की टोपी, बोस की जॉर्जियाई चाल, या कलाम साहब की मुस्कुराहट क्यों नहीं?
टेक्सास में तबाही: बारिश आई, जिंदगी बहा ले गई, 27 लड़कियां लापता
पहली छपाई: गांधी जी ने नोट पर किया डेब्यू
RBI बताता है कि गांधी जी का पहला नोट-प्रवेश 1969 में हुआ — वो भी एक रुपये के VIP पास पर, जब उनकी 100वीं जयंती थी। फिर 1987 में 500 रुपये के नोट पर उनकी ‘स्माइल विद पर्पस’ वाली फोटो आई और 1996 से सभी नोट गांधीमय हो गए। इसे ही कहते हैं “फुल टाइम नोटपद”।
जब अशोक स्तंभ से बाघ तक छपे, पर नकली बनाना आसान था
आज़ादी के बाद नोटों पर कभी अशोक स्तंभ, तो कभी बाघ, तो कभी बांध दिखते थे — जैसे देश की करेंसी “डिस्कवरी चैनल” बन गई हो। लेकिन दिक्कत ये थी कि इनकी फोटोकॉपी बहुत आसान थी, और नकली नोटों का धंधा फलने-फूलने लगा।
नकली नोटों से बचने के लिए इंसानी चेहरा, और गांधी जी ‘वोट ऑफ कन्फिडेंस’
RBI को समझ आया — जानवरों की तस्वीरें नकली बनाना आसान है, पर इंसान का चेहरा कॉपी करना मुसीबत है। और फिर गांधी जी जैसे शख्स जो पूरे देश में ‘बिना चुनाव लड़े’ पसंद किए जाते हैं, उनकी तस्वीर चुनी गई।
बाकी नेताओं की तस्वीरों से राजनीति की गंध आती है — गांधी जी अकेले ऐसे इंसान हैं, जिनसे कोई वोट नहीं मांगता, पर सब उनके नोट मांगते हैं।
गांधी जी की तस्वीर का असली फोटोशूट – बैकस्टेज स्टोरी
जो गांधी जी की तस्वीर आज नोटों पर छपी है, वो असल में 1946 की है, जब वे ब्रिटिश राजनेता लॉर्ड पेथिक-लॉरेंस के साथ थे। फोटो क्लिक हुई, मुस्कान छपी, और आज भी छप रही है।
फोटोग्राफर कौन था? ये अभी भी इतिहास का सबसे बड़ा फोटो क्रेडिट मिसिंग केस है।
बदलने की मांग तो बहुत हुई, पर RBI ने कहा – “नो नोट चेंज, ओनली चेंज नोट!”
कई बार टैगोर, कलाम, बोस, और यहां तक कि लक्ष्मी-गणेश जी को भी नोटों पर छापने की मांग उठी — लेकिन RBI का जवाब एकदम बजट वाला था:
“महात्मा गांधी से बेहतर ‘ब्रांड एम्बेसडर’ कौन?”
2014 में अरुण जेटली ने संसद में कहा — गांधी जी भारत के ‘सामूहिक स्वभाव’ को दर्शाते हैं, न कि किसी दल या धर्म को।
सिक्योरिटी फीचर्स: गांधी जी का चेहरा, पर काम टेक्नोलॉजी का
1996 में जो महात्मा गांधी सीरीज आई, उसमें सिक्योरिटी थ्रेड, वॉटरमार्क, और दृष्टिबाधितों के लिए इंटैग्लियो प्रिंटिंग जैसी चीजें जोड़ी गईं। 2016 में महात्मा गांधी “नई” सीरीज आई और नोटों की सुरक्षा में मोदी ब्रांड एडिशन लग गया।
गांधी जी की तस्वीर में नोट का चरित्र भी छिपा है
महात्मा गांधी सिर्फ नोटों पर नहीं, हमारी आर्थिक नैतिकता के प्रतिनिधि भी हैं — भले ही हम खुद नैतिक न हों। जब आप 500 का नोट खर्च करते हैं, तो शायद गांधी जी कहते हैं:
“खर्च करोगे, पर याद रखना – स्वदेशी अपनाओ, और नकली से बचो।”
ट्रंप की सुरक्षा में सेंध! नो-फ्लाई ज़ोन में घुसे विमान को F-16 ने से भगाया